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P₁ als neue Leitversion |
P₁ als neue Leitversion |
| C Neif 92 |
| I | C Neif 92 = KLD 15 XXII 2 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 37ra |
| | [ini W|2|rot]{e|ê}, wa{s|z} ##wnders l{i|î}t an w{i|î}be#n·, |
| | #s{i|î}t ir g{#v^e|üe}-/te kan vertr{i|î}ben· |
| | #sendem herzen #sen-/de n{o|ô}t·! |
| | der in liepl{i|î}ch #siht in {o^v|ou}gen· |
| | mit ge-/walde #vn#d d{a|â} b{i|î} t{o^v|ou}gen·, |
| | dem i#st al #s{i|î}n tr{#v|û}re#n / t{o|ô}t·. |
| | i#st im reht{#v^i|iu} lieb{i|e} b{i|î}·, |
| | #s{o|ô} i#st beiden da#nne / wol·. |
| | %minne t{#v^o|uo}t #si #sorgen fr{i|î}·: |
| | #si #stri{k|ck}et bei-/d{i#v|iu} herzen in ein |
| | #vn#d wendet k#v#mberl{i|î}ch[sup e sup] dol·. / |
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| P₁ Namenl 24 |
| II | P₁ Namenl 24 = KLD 15 XXII 2 |
| Überlieferung: Bern, Burgerbibl., Cod. 260, fol. 235r |
| | [ini W|2|rot]ei, waz g{u^e|üe}te l{i|î}t an w{i|î}ben, #/ |
| | #s{i|î}t ir / tr{o|ô}#st kan wol ve_|r_tr{i|î}ben #/ |
| | #senden / herzen #sende n{o|ô}t! #/ |
| | der in rehte #siht in / d'{o^v|ou}gen[[???]] #/ |
| | mit gewalt #vn#d d{a|â} b{i|î} t{o^v|ou}gen, #/ / |
| | dem i#st alle #s{i|î}n tr{u|û}ren t{o|ô}t. #/ |
| | wonet in / #st{e|æ}te tr{u|iu}we b{i|î}, #/ |
| | #s{o|ô}#st in beiden danne / wol. #/ |
| | %minne t{u^o|uo}t #si #sorgen fr{i|î}: #/ |
| | #si #stric-/ket beide herze in ein, #/ |
| | #s{u^i|i} wendet- // kumb#erl{i|î}chen {t|d}ol·. / |
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| C Neif 93 |
| II | C Neif 93 = KLD 15 XXII 3 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 37ra |
| | [ini W|2|rot]{i|î}{b|p}, d{i|î}n minne{n|}{k|c}l{i|î}ch geb{a|â}ren· |
| | kan der / #senden h#erzen v{a|â}ren·;[[3 i¬vâren~i swV. mit Gen. ›gefährden, berauben‹ (vgl. Le III, Sp. 21f. mit Beispielen).]] |
| | w{i|î}p, d#v bi#st ein #s{#v^e|üe}-/zer name·; |
| | w{i|î}{b|p}, d#v kan#st wol fr{o^ei|öu}de m{e|ê}ren·; / |
| | w{i|î}p, d#v kan#st[[2 i¬kanst wol~i KLD]] fr{o^ei|öu}de l{e|ê}ren·: |
| | dir i#st w{i|î}pl{i|î}ch / {e|ê}re zame·. |
| | w{i|î}{b|p}, d#v g{i|î}#st {o^v|ou}ch h{o|ô}hen m{#v^o|uo}t·; |
| | w{i|î}{b|p}, / d#v g{i|î}#st {o^v|ou}ch fr{o^ei|öu}den vil·; |
| | w{i|î}{b|p}, d#v bi#st f{u^i|ü}r tr{u|û}-/ren g{#v^o|uo}t·; |
| | des m{#v^o|uo}{s|z} ich iemer #s{e|æ}l{i|e}{g|c} #s{i|î}n. |
| | d#v bi#st / der welte ##wnne #spil·. / |
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| P₁ Namenl 25 |
| III | P₁ Namenl 25 = KLD 15 XXII 5 |
| Überlieferung: Bern, Burgerbibl., Cod. 260, fol. 235v |
| | [ini M|2|rot]inne, wei#st du, wen ich meine? #/ |
| | %mi#n-/ne, e{s|z} i#st die liebe a{ll|l}eine, #/ |
| | der ich / mich f{u^i|ü}r eigen #iach; #/ |
| | %mi#nne, e{s|z} i#st die / mi#nne{n|}cl{i|î}che, #/ |
| | %mi#nne, #ins[sup ez sup] i#st die #s{e|æ}ldenr{i|î}che. #/ / |
| | wei#st du, %mi#nne, wa{s|z} be#schach, #/ |
| | d{o|ô} ich / #iunge#st wa{z|s} b{i|î} ir |
| | #vn#d ich vor der liebe#n / #sa{s|z}? #/ |
| | %mi#nne, #sich, d{o|ô} {d|t}{e|æ}t [[??? Mfr.? Normalisierung bei Regenbogen]] du mir, #/ |
| | da{s|z} ich / vor liebe niht en<<#sprach #/ |
| | #vnd ich m{i|î}n / #selbes gar verga{s|z}·! / |
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| C Neif 94 |
| III | C Neif 94 = KLD 15 XXII 1 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 37ra |
| | [ini H|2|rot]eide #vn#d {o^vw|ouw}e #st{#v^o|uo}nt mit bl{u^e|üe}te· |
| | gege#n des / #s{#v^e|üe}{#s#s|z}en m{eig|ei}e#n g{#v^e|üe}te·: |
| | die #sint beide worde#n / val·. |
| | dar z{#v^o|uo} wil der wint#er twinge#n##· |
| | {c|k}leiner / vogel{i|î}n #s{#v^e|üe}{#s#s|z}e{#s|z} #singen·, |
| | da{s|z} #si #sw{i|î}gent {#v|ü}ber / al·. |
| | da{s|z} #solt ich vo#n #sch#vlden klagen·; |
| | #s{o|ô} kla-/ge ich ein ander n{o|ô}t·. |
| | #solt aber ich{s|z} der lie-/ben #sagen·: |
| | mich #i{a|â}mert n{a|â}ch ir mi#nne m{e|ê} / |
| | danne n{a|â}ch den liehten r{o|ô}#sen r{o|ô}t·. / |
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| P₁ Namenl 23 |
| I | P₁ Namenl 23 = KLD 15 XXII 1 |
| Überlieferung: Bern, Burgerbibl., Cod. 260, fol. 235r |
| | [ini H|2|rot]eide #vn#d anger #st{u^o|uo}nt / in bl{u^e|üe}te #/ |
| | gegen des liehte m{ey|ei}en / g{u^e|üe}te: #/ |
| | die _|sint_[[1=, Konjektur nach C]] beide worden val. #/ |
| | dar z{u^o|uo} / kan der winter twingen #/ |
| | kleiner v{o^e|o}ge-/l{i|î}n #s{u^e|üe}{#sz|z}e{s|z} #singen, #/ |
| | daz #s{u^i|i} #sw{i|î}ge#nt {#v^i|ü}ber / al. #/ |
| | da{s|z} #solt ich vo#n #schulde#n klagen; #/ / |
| | nu{n|} klage ich ein ander n{o|ô}t. #/ |
| | getor#st / ich{s|z} der vil lieben #sagen: #/ |
| | mich #i{a|â}mert / n{a|â}ch ir mi#nne m{e|ê} #/ |
| | danne n{a|â}ch den lie-/ben r{o|ô}#sen r{o|ô}t. #/· / [[??? Codierung?]] |
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| C Neif 95 |
| IV | C Neif 95 = KLD 15 XXII 4 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 37ra |
| | [ini S|2|rot]{#v^e|üe}{#s#s|z}e %minne, m{i|î}ne #sinne· |
| | #i{a|â}mert n{a|â}ch / der lieben mi#nne·. |
| | %minne, hilf, e#st[[3 i¬e#st~i = i¬es ist~i.]][[???kurz analog zu "dast" Vgl. § E 21,3.]] an der / z{i|î}t·! |
| | %minne, d#v kan#st tr{#v|û}ren #swenden·, |
| | h{o|ô}{h|ch}-/gem{#v^e|üe}te in herze #senden·: |
| | %mi#nne, d{i|î}n gewalt / i#st w{i|î}t·. |
| | %mi#nne, ich bin dir #vndert{a|â}n·: |
| | %min-/ne, wis gewalt{i|e}{g|c} m{i|î}n#·! |
| | {o|ô}w{e|ê}, %minne, #solt / ich h{a|â}n· |
| | ir mi#nne{k|c}l{i|î}chen w{i|î}bes l{i|î}p, |
| | #s{o|ô} w{e|æ}-/re m{i|î}n tr{#v|û}ren gar d{a|â} hin##·! // [[1 danach Freiraum für eine (weitere) Strophe (bis 37rb; 8 Zeilen)]] |
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| P₁ Namenl 27 |
| | P₁ Namenl 27 = KLD 15 XXII 4 |
| Überlieferung: Bern, Burgerbibl., Cod. 260, fol. 235v |
| | [ini S|2|rot]{u^e|üe}{#sz|z}e %mi#nne, m{i|î}ne #sinne #/ |
| | #i{a|â}mert / n{a|â}ch der liebe#n mi#nne. #/ |
| | %mi#nne, hilf, / e#st[[3 i¬e#st~i = i¬es ist~i.]] an der z{i|î}t! #/ |
| | %mi#nne, du kan#st tr{u|û}ren / #swenden, #/ |
| | h{o|ô}chgem{u^e|üe}t in h#erzen #senden: #/ |
| | %mi#n-/ne, d{i|î}n gewalt i#st w{i|î}t. #/ |
| | %mi#nne, ich bin dir / #vndert{a|â}n: #/ |
| | %mi#nne, wis gewalt{i|e}{g|c} m{i|î}n! #/ |
| | {o|ô}-/w{e|ê}, %mi#nne, m{o^e|ö}ht ich h{a|â}n #/ |
| | ir mi#nne{n|}cl{i|î}che#n / w{i|î}bes l{i|î}p, #/ |
| | #s{o|ô} w{e|æ}r m{i|î}n tr{u|û}ren gar d{a|â}->>/hin·! / |
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