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C als neue Leitversion |
| A Leuth 22 |
| I | A Leuth 22 = KLD 11 I 1 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 37v |
| | [[1 Paragraphenzeichen am Rand (Liedbeginn)]][ini N|2|blau]#v wil aber der {c|k}leinen vogele #singen |
| | – daz i#st w{a|â}r – |
| | hie niht langer / #s{i|î}n·. |
| | al#s{o|ô} wil der leide winter twingen |
| | all{#v^i|iu} #i{a|â}r |
| | liehter bl{#v^o|uo}men / #sch{i|î}n·. |
| | ich enkan in dem walde niht |
| | ein gr{#v|üe}nez {c|k}renz{i|e}l vinden. |
| | w{a|â} / mi{tt|t}e #sol m{i|î}ner vr{oi|öu}den tr{o|ô}#st |
| | ir reidez h{a|â}r· bewinden, |
| | der man #sch{o|œ}/ne b{i|î} der g{#v^o|üe}te giht·? |
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| C Knecht 1 |
| I | C Knecht 1 = KLD 11 I 1 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 317ra |
| | [ini N|4|blau]#v wil aber d#er kleine#n vogele #sin-/gen· |
| | – d#c i#st w{a|â}r· – |
| | hie nie niht lan-/ger #s{i|î}n·. |
| | al#s{o|ô} wil d#er leide wi#nter / twinge#n#· |
| | ell{u^i|iu} #i{a|â}r· |
| | lieht#er bl{#v^o|uo}men / #sch{i|î}n·. |
| | ich enkan i#n dem walde niht |
| | ein gr{u^e|üe}-/ne{s|z} krenzel vinde#n·. |
| | w{a|â} mi{tt|t}e #sol m{i|î}n#er fr{o^ei|öu}-/den tr{o|ô}#st |
| | ir reide{s|z} h{a|â}r bewinde#n·, |
| | d#er ma#n #sch{o^e|œ}-/ne b{i|î} der g{#v^e|üe}te giht#·? / |
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| A Leuth 23 |
| II | A Leuth 23 = KLD 11 I 2 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 37v |
| | [ini D|1|rot]{o|ô} m{i|î}n o#vgen #si alr{e|ê}#st {i|e}r#s{a|â}hen |
| | – wol der z{i|î}t! –, |
| | daz / wa{z|s} m{i|î}n gemach·. |
| | d{o|ô} #saz ich ir #s#vnder h{#v^o|uo}te n{a|â}hen, |
| | daz mir #s{i|î}t |
| | niem#er / m{e|ê}r ge#schach·. |
| | wie #si hieze, des vr{a|â}gt ich. |
| | d{o|ô} #iach #si balde #sch{o|ô}ne, |
| | #si #seite: ›#s{o|ô} / ie lenger, #s{o|ô} |
| | ie lieber.‹ got ir l{o|ô}ne! |
| | al#s{o|ô} h{a|â}t #si mir genennet #sich·. |
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| C Knecht 2 |
| II | C Knecht 2 = KLD 11 I 2 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 317ra |
| | [ini D|2|blau]{o|ô} m{i|î}n {o^v|ou}ge#n #si alr{e|ê}r#st er#s{a|â}he#n· |
| | – wol d#er z{i|î}t·! –, / |
| | d#c w►#c|as◄ m{i|î}n gemach·. |
| | d{o|ô} #sa{s|z} ich ir #s#vnd#er / h{u^o|uo}te n{a|â}he#n·, |
| | d#c mir #s{i|î}t##· |
| | niem#er m{e|ê}r ge#schach·. / |
| | wie #si hie{#s#s|z}e, des vr{a|â}gte ich·. |
| | d{o|ô} #iach #si balde / #sch{o|ô}ne·, |
| | #si #seite: ›#s{o|ô} ie le#nger, #s{o|ô} |
| | ie lieb#er.‹ got ir l{o|ô}ne·! / |
| | al#s{o|ô} h{a|â}t #si mir gene#nnet #sich·. / |
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| A Leuth 24 |
| III | A Leuth 24 = KLD 11 I 3 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 37v |
| | [ini {E|Ê}|2|blau] daz #si anders ieman lieber w{e|æ}re |
| | danne mir, |
| | #sanfter w{e|æ}re ich t{o|ô}t·. / |
| | ich h{a|â}n #s#v{z|s} d_ie|er_ h#erze<<lange_|n_ #sw{e|æ}re [[2 -5 i¬der herzelangen swære / vil von ir~i KLD]] [[3 i¬herzelanc~i Hapax legomenon (Le I, Sp. 1272), wobei das Morphem i¬herze-~i offenbar der Intensivierung dient (vgl. i¬herzeclîche~i Adv. ›sehr‹ [Le I, Sp. 1271]).]] |
| | vil von ir |
| | #vn#d der #seneden n{o|ô}t·. |
| | ich / bin ›ie lenger, #s{o|ô} |
| | ie leider‹ vor genennet. |
| | {o|ô}w{e|ê}, d#c mich ir g{#v^o|üe}te niht |
| | gn{e|æ}//decl{i|î}ch erkennet! |
| | d{a|â} vo#n wirde ich l{o|ô}nes #selten vr{o|ô}·. |
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| C Knecht 3 |
| III | C Knecht 3 = KLD 11 I 3 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 317ra |
| | [ini {E|Ê}|2|blau] d#c #si and#ers ieme#n lieb#er w{e|æ}re#· |
| | da#nne mir·, |
| | #san-/fter w{e|æ}r ich t{o|ô}t·. |
| | ich h{a|â}n #sus d_ie|er_ h#erzela#n-/ge_|n_ #sw#{e|æ}re· [[2 -5 i¬der herzelangen swære / vil von ir~i KLD]] [[3 i¬herzelanc~i Adj. Hapax legomenon (Le I, Sp. 1272), wobei das Morphem i¬herze-~i offenbar der Intensivierung dient (vgl. i¬herzeclîche~i Adv. ›sehr‹ [Le I, Sp. 1271]).]] |
| | vil vo#n ir· |
| | #vn#d d#er #sende#n n{o|ô}t·. |
| | ich bin ir / ›ie leng#er, #s{o|ô}##· |
| | ie leider‹ vor gene#nnet·. |
| | {o|ô}<<w{e|ê}, da{s|z} / mich ir g{#v^e|üe}te niht |
| | gen{e|æ}de{k|c}l{i|î}ch¦erke#nnet·! |
| | d{a|â} / vo#n wird ich l{o|ô}nes #selte#n vr{o|ô}.#· / |
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| A Leuth 25 |
| IV | A Leuth 25 = KLD 11 I 4 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 38r |
| | [ini A|1|rot]ls ich gemeinl{i|î}chen / m{#v^o|uo}z geb{a|â}ren, |
| | #s{o|ô} i#st ir #spot |
| | allez, d#c ich ge#sage, |
| | #vn#d giht, ich well{i|e} ir {e|ê}ren v{a|â}/ren. |
| | n#v d#vr got |
| | h{o^e|œ}ret m{i|î}ne {c|k}lage: |
| | #si wil, daz ich vrem{i|e}de #s{i|î} |
| | #vn#d dar mit tr{u^i|iu}/wen #sinne. |
| | #si mac ez h{a|â}n v{u|ü}r #si, #si wil – [[2 -11 i¬si mag ez hân für sî: ich wil / es mê, hânz niht für minne: / ich sold eteswenne ir wachen bî.~i KLD]][[3 i¬ez~i lässt sich auf das ›Fernsein‹ in V. 7f. beziehen; dies kann (i¬mac~i) die Dame für Treue halten, wenn man das i¬v{u|ü}r #si~i auf i¬tr{u^i|iu}/wen~i in V. 8 zurückbezieht; das Ich hält dies nicht für Minne (V. 10). Kraus bezieht das i¬v{u|ü}r #si~i auf i¬minne~i in V. 10 (s. sein Konjekturvorschlag für V. 9–11). Der Nachsatz i¬#si wil~i lässt sich als Modifikation des i¬#si mac~i auffassen.]] |
| | _m|in_e h{a|â}n{#s|z} niht v{u|ü}r minne;· |
| | ich #sol dir / ete#swenne wachen b{i|î}·. |
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| C Knecht 4 |
| IV | C Knecht 4 = KLD 11 I 4 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 317ra |
| | [ini A|2|blau]ls [[2 i¬So ich~i KLD]] ich gemeinecl{i|î}che#n m{#v^o|uo}{s|z} geb{a|â}re#n·, [[3 i¬gemeineclîche~i Adv. ›auf gemeinsame Weise, gemeinschaftlich‹ (Le I, Sp. 841), hier wohl auf folgende Weise zu verstehen: »der Dichter meint damit wohl ›wie wenn wir (die Geliebte und ich) eine Gemeinschaft bildeten‹« (KLD II, S. 70).]] |
| | #s{o|ô} i#st / ir #spot##· |
| | alle{s|z}, d#c ich ge#sage·, |
| | #vn#d giht, ich / welle ir {e|ê}re#n v{a|â}re#n·. |
| | n#v d#vr got |
| | h{o^e|œ}ret m{i|î}ne kla-/ge·: |
| | #si wil, d#c ich vremde #s{i|î} |
| | #vn#d dar mit tr{u^iw|iuw}e#n / #sinne·. |
| | #si ma{g|c} e{s|z} h{a|â}n v{u^i|ü}r #sie, #sie wil – [[2 -11 i¬si mag ez hân für sî: ich wil / es mê, hânz niht für minne: / ich sold eteswenne ir wachen bî~i KLD]] [[3 i¬e{s|z}~i lässt sich auf das ›Fernsein‹ in V. 7f. beziehen; dies kann (i¬ma{g|c}~i) die Dame für Treue halten, wenn man das i¬v{u^i|ü}r #sie~i auf i¬tr{u^iw|iuw}en~i in V. 8 zurückbezieht; das Ich hält dies nicht für Minne (V. 10). Kraus bezieht das i¬v{u^i|ü}r #sie~i auf i¬mi#nne~i in V. 10 (s. sein Konjekturvorschlag für V. 9f.). Der Nachsatz i¬#sie wil~i lässt sich als Modifikation des i¬#si ma{g|c}~i auffassen.]] |
| | _m|in_e h{a|â}#n{#s|z} / niht v{u^i|ü}r mi#nne;· |
| | ich #sol dir ete#swe#nne wache#n b{i|î}·. / |
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