|
A als neue Leitversion  |
B als neue Leitversion  |
E als neue Leitversion  |
| C Reinm 77 |
| I | |
| I | C Reinm 77 = MF 170,1 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 101vb |
| | [ini I|3|rot]%Ch wil alle{s|z} g{a|â}he#n#· |
| | z{#v^o|uo} der liebe, die ich h{a|â}n·. / |
| | #s{o|ô} i#st e{s|z} niender n{a|â}hen·,[[3 ›So ist es keineswegs naheliegend‹.]] |
| | da{s|z} #sich ende no{h|ch} / m{i|î}n w{a|â}n·. |
| | doch v#er#s{#v^o|uo}che ich{s|z} alle tage· |
| | #vn#d ge-/diene ir #s{o|ô}, d#c #si {a|â}n ir danc |
| | mit fr{o^ei|öu}de#n m{#v^o|uo}{s|z} / erwenden k#vmb#er, den ich trage·. / |
|
|
|
|
|
|
|
|
| B *Reinm 34 |
| I | |
| I | B *Reinm 34 = MF 170,1 |
| Überlieferung: Stuttgart, LB, HB XIII 1, pag. 93 |
| | [ini I|1|blau]ch wil alle{s|z} g{a|â}hen· |
| | z{#v^o|uo} der liebe, / die ich h{a|â}n·. |
| | #s{o|ô} i#st e{s|z} niender n{a|â}hen·,[[3›So ist es keineswegs naheliegend‹.]] |
| | da{s|z} #sich ende / noch m{i|î}n w{a|â}n·. |
| | doch ver#s{#v^o|uo}che ich e{s|z} alle tage· / |
| | #vn#d gediene ir #s{o|ô}, da{s|z} #si {a|â}ne ir dan{k|c} |
| | mit vr{o^e|öu}den // m{#v^o|uo}{s|z} erwenden· k#vmber, den ich trage·. / |
|
|
|
|
|
|
|
| E Reinm 34 (246) |
| V | |
| V | E Reinm 34 (246) = MF 170,1 |
| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 182va |
| | [ini #J|1|rot]ch wil allez g{a|â}hen· / |
| | durch die liebe, die ich h{a|â}n·. |
| | ez i#st ni/ender{t|} n{a|â}hen·,[[3 ›(Daher) ist es keineswegs naheliegend‹.]] |
| | daz ich v#erenden #s{u^e|ü}lle / m{i|î}nen w{a|â}n·. |
| | doch ge#sprich ich nim/mer niht·: |
| | ›ich erkenne an dir die #sin/ne·.‹ |
| | wol bin ich getr{u^ew|iuw}e, daz #sie mirz / in den {au|ou}gen #siht·. |
|
|
|
|
|
|
|
| C Reinm 78 |
| II | |
| II | C Reinm 78 = MF 170,8 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 101vb |
| | [ini M|2|rot]ich betwanc ein m{e|æ}re·, |
| | d#c ich vo#n ir h{o|ô}rte / #sage#n·: |
| | wie #si ein fr{ow|ouw}e w{e|æ}re·, |
| | d{u^i|iu} #sich #sch{o|ô}-/ne k#vnde tragen·. |
| | da{s|z} v#er#s{#v^o|uo}che ich #vn#d i#st w{a|â}r·: / |
| | ir k#vnde nie kein w{i|î}{b|p} ge#schaden,[[3-7 Etwa ›Keine Frau könnte ihr schaden, noch nicht mal ein Haar krümmen – das ist ja wenig‹.]] |
| | d#c i#st wol / kleine, #s{o|ô} gr{o|ô}{s|z} als #vmb ein h{a|â}r·. / |
|
|
|
|
|
|
|
| A Reinm 70 |
| II | |
| II | A Reinm 70 = MF 170,8 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 4v |
| | [ini M|1|blau]ich betwanc ein m{e|æ}re, |
| | d#c ich vo#n ir h{o|ô}rte / #sagen·: |
| | wie #si ein vr{ow|ouw}e w{e|æ}re·, |
| | di#v #sich #sch{o|ô}ne kan getragen |
| | mit ir / g{#v<^o>|uo}te [[1 i¬g#v<^o>te~i$ Superskript über i¬#v~i ausgeblasst]] zaller z{i|î}t·. |
| | ir t{#v^o|u}gent, di#v zieret wol ein lant·. |
| | d{a|â} vo#n di#v g{#v^o|uo}te n{a|â}he / an m{i|î}nem herzen l{i|î}t·. |
|
|
|
|
|
|
|
| B *Reinm 35 |
| II | |
| II | B *Reinm 35 = MF 170,8 |
| Überlieferung: Stuttgart, LB, HB XIII 1, pag. 94 |
| | [ini M|1|rot]ich betwan{g|c} {ai|ei}n m{##e|æ}re·, |
| | da{s|z} ich von ir h{o|ô}rte #sagen·: / |
| | wie #si {ai|ei}n vr{ow|ouw}e w{##e|æ}re·, |
| | d{#v^i|iu} #sich #sch{o|ô}ne k#vnde tragen·. / |
| | da{s|z} ver#s{#v^o|uo}che ich #vn#d i#st w{a|â}re·:[[3/7 Das Reimschema erfordert die apokopierte Realisierung der Reimwörter.]] |
| | ir k#vnde nie deh{ai|ei}n / w{i|î}p ge#schaden·,[[3-7 Etwa ›Keine Frau könnte ihr schaden, noch nicht mal ein Haar krümmen – das ist ja wenig‹.]] |
| | da{s|z} i#st wol {c|k}l{ai|ei}ne, #s{o|ô} gr{o|ô}{s|z} al#se #vmbe / #Z{ai|ei}n h{a|â}re·. / |
|
|
|
|
|
|
|
| E Reinm 33 (245) |
| IV | |
| IV | E Reinm 33 (245) = MF 170,8 |
| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 182va |
| | [ini M|1|rot]ich be/twanc ein m{e|æ}re·, |
| | daz ich von ir h{o^e|œ}re / #sagen·: |
| | wie #sie ein fr{auw|ouw}e w{e|æ}re |
| | #vn#d / #sich #sch{o|ô}ne konde tragen·. |
| | m{i|î}n rede / konde ir niht ge#schaden·,[[3 Entweder bezogen auf die ausbleibende Reaktion der Dame (sie hat ihn nicht erhört und sich selbst dadurch nicht geschadet) oder auf den Gesang des Ichs (er spricht nicht schlecht von ihr).]] |
| | daz i#st an / m{i|î}me dien#ste #sch{i|î}n·. |
| | d{o|ô} von bin ich / {#v^e|ü}ber<<laden·. |
|
|
|
|
|
|
|
| C Reinm 79 |
| III | |
| III | C Reinm 79 = MF 170,15 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 101vb |
| | [ini S|2|rot]wa{s|z} in allen lande#n· |
| | mir ze>>liebe mac be-/#schehen·, |
| | d#c #st{a|â}t in ir handen·; |
| | anders nie-/man wil ichs v#er#iehen·. |
| | #si i#st m{i|î}n {o|ô}#sterl{i|î}cher / tac· |
| | #vn#d h{a|â}n #si in m{i|î}ne#m h#erzen lie{b|p}. |
| | d#c wei{s|z} er / wol, dem ich niht geliegen mac·. / |
|
|
|
|
|
|
|
| A Reinm 69 |
| I | |
| I | A Reinm 69 = MF 170,15 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 357, fol. 4v |
| | [ini S|1|rot]waz in allen landen[[1 Paragraphenzeichen am linken Rand (Liedbeginn)]] |
| | mir· ze liebe mac / ge#schehen, |
| | d#c #st{e|ê}t in>>ir handen; |
| | anders niema#n wil ich e{z|s} #iehen·. |
| | #si i#st / m{i|î}n {o|ô}#sterl{i|î}cher tac· |
| | #vn#d h{a|â}n{s|z} in m{i|î}nem h#erzen liep·. |
| | d#c weiz er wol, deme / niema#n niht gel{i|ie}gen mac·. |
|
|
|
|
|
|
|
| B *Reinm 36 |
| III | |
| III | B *Reinm 36 = MF 170,15 |
| Überlieferung: Stuttgart, LB, HB XIII 1, pag. 94 |
| | [ini S|1|blau]wa{s|z} in allen landen· |
| | mir ze liebe ma{g|c} / ge#schehen·, |
| | da{s|z} #st{a|â}t in _|ir_ [[1=, Konjektur nach ACE]]handen·; |
| | anders niemen wil / ich #s{i|î}n #iehen·. |
| | #s_o|i_[[1=, Konjektur nach ACE]] i#st m{i|î}n {o|ô}#sterl{i|î}cher ta{g|c}· |
| | #vn#d h{a|â}n #si / in m{i|î}nem herzen liep·. |
| | da{s|z} w{ai|ei}{s|z} er wol, dem man / niht geliegen ma{g|c}·. / |
|
|
|
|
|
|
|
| E Reinm 30 (242) |
| I | |
| I | E Reinm 30 (242) = MF 170,15 |
| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 182rb |
| | [ini S|2|rot]waz in allen landen |
| | mir ze>>heile / mac ge#schehen·, |
| | daz #st{e|ê}t an ir _|handen_[[1 =, Konjektur nach ABC]]; #/ /[[??? Reim]] |
| | nimm#er wil ich anders niht ge#iehen. / |
| | #sie i#st m{i|î}n {o|ô}#sterl{i|î}cher tac· |
| | #vn#d h{a|â}ns // in m{i|î}me her{tz|z}en liep·. |
| | daz weiz der / wol, dem nieman niht verbergen / mac·. |
|
|
|
|
|
|
|
| C Reinm 80 |
| IV | |
| IV | C Reinm 80 = MF 170,22 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 101vb |
| | [ini S|2|rot]i h{a|â}t leider #selten· |
| | m{i|î}ne klagende rede / v#ernome#n·; |
| | des m{#v^o|uo}{s|z} ich engelten·. |
| | nie k#vn-/de ich ir n{a|â}her kome#n·. |
| | m{e|a}n{i|e}ger z{#v^o|uo} den fr{o^v|ou}-/wen ga^^t· |
| | #vn#d #sw{i|î}get allen eine#n tac#· |
| | #vn#d an-/ders niema#n #s{i|î}ne#n wille#n reden la^^t·.[[3 ›Und lässt (auch) keinen anderen von seinen Wünschen sprechen‹; oder adverbial: ›und lässt (auch) keinen anderen nach seinem Willen sprechen‹.]] / |
|
|
|
|
|
|
|
|
| B *Reinm 37 |
| IV | |
| IV | B *Reinm 37 = MF 170,22 |
| Überlieferung: Stuttgart, LB, HB XIII 1, pag. 94 |
| | [ini S|1|rot]i h{a|â}t l{ai|ei}der #selten· |
| | m{i|î}ne {c|k}lagende rede vernome#n·; / |
| | des m{#v^o|uo}{s|z} ich engelten·. |
| | nie k#vnde ich ir n{a|â}her komen·. / |
| | man{i|e}ger z{#v^o|uo} den vr{ow|ouw}en g{a|â}t· |
| | #vn#d #sw{i|î}get allen {ai|ei}ne#n / ta{g|c}· |
| | #vn#d anders niemen #s{i|î}nen willen reden l{a|â}t·.[[3›Und lässt (auch) keinen anderen von seinen Wünschen sprechen‹; oder adverbial: ›und lässt (auch) keinen anderen nach seinem Willen sprechen‹.]] / |
|
|
|
|
|
|
|
| E Reinm 31 (243) |
| II | |
| II | E Reinm 31 (243) = MF 170,22 |
| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 182va |
| | [ini S|1|rot]ie h{a|â}t #selten |
| | m{i|î}ne {c|k}lagende / rede vern{u|o}{mm|m}e#n·; |
| | des m{u^o|uo}z ich engelte#n. / |
| | ich konde ir nie #s{o|ô} n{a|â}hen k{u|o}{mm|m}en·. / |
| | man{i|e}ger z{#v^o|uo} den fr{auw|ouw}en g{a|â}t· |
| | #vnde / #sw{i|î}get allen einen tac·, |
| | der anders / nieman #s{i|î}nen willen reden l{a|â}t·.[[3 ›Der lässt (auch) keinen anderen von seinen Wünschen sprechen‹ ; oder adverbial: ›der lässt (auch) keinen anderen nach seinem Willen sprechen‹.]] |
|
|
|
|
|
|
|
| C Reinm 81 |
| V | |
| V | C Reinm 81 = MF 170,29 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 101vb |
| | [ini N|2|rot]ieman im e{s|z} v#ervienge·[[3 i¬vervâhen~i stV. ›anrechnen‹ (vgl. Le III, Sp. 282f.). ]] |
| | zeiner gro^^{#s#s|z}e#n / mi#s#set{a|â}t·, |
| | ob er danne#n gienge·, |
| | d{a|â} er / niht ze>>t{u^o|uo}nne h{a|â}t·. |
| | #spr{e|æ}che als ein gewi{#s-/#s|zz}en man·:[[3 i¬gewizzen~i Adj. ›besonnen, verständig‹ (vgl. Le I, Sp. 995f.).]] |
| | ›gebietet ir an m{i|î}ne #stat!‹[[2 i¬ir~i$ i¬mir~i {MF/K #118}]][[3 Zum seltenen Hinzutreten des Pronomens im imperativen Satz vgl. h¬25~hMhd. Gramm. § S 110. Übersetzungsvorschläge: »Erlaubt mir, mich zu entfernen«, {Schweikle #7}, S. 217; »Nehmt meinen Platz ein!«, {Kasten #8}, S. 333.]] |
| | d#c w{#e|æ}re / ein zuht #vn#d #st{#v^e|üe}nde im lobel{i|î}che#n an·. / |
|
|
|
|
|
|
|
|
| B *Reinm 38 |
| V | |
| V | B *Reinm 38 = MF 170,29 |
| Überlieferung: Stuttgart, LB, HB XIII 1, pag. 94 |
| | [ini N|1|blau]iemen ime e{s|z} vervienge·[[3i¬vervâhen~i stV. ›anrechnen‹ (vgl. Le III, Sp. 282f.).]] |
| | ze {ai|ei}ner gr{o|ô}{#s#s|z}en mi#s#se-/t{a|â}t·, |
| | ob er dannen gienge·, |
| | d{a|â} er niht ze t{#v^e|uo}nne h{a|â}t·. / |
| | #spr{##e|æ}che als {ai|ei}n gewi{#s#s|zz}en [[3i¬gewizzen~i Adj. ›besonnen, verständig‹ (vgl. Le I, Sp. 995f.).]]man·: |
| | ›gebietet ir an m{i|î}-/ne #stat·!‹[[2 i¬ir~i$ i¬mir~i {MF/K #118}]][[3 Zum seltenen Hinzutreten des Pronomens im imperativen Satz vgl. h¬25~hMhd. Gramm. § S 110. Übersetzungsvorschläge: »Erlaubt mir, mich zu entfernen«, {Schweikle #7}, S. 217; »Nehmt meinen Platz ein!«, {Kasten #8}, S. 333.]] |
| | da{s|z} w{##e|æ}re {ai|ei}n z#vht #vn#d #st{#v^e|üe}nde ime lobel{i|î}-/#Zchen an·. / |
|
|
|
|
|
|
|
| E Reinm 32 (244) |
| III | |
| III | E Reinm 32 (244) = MF 170,29 |
| Überlieferung: München, UB, 2° Cod. ms. 731, fol. 182va |
| | †[ini N|1|rot]ie/man immer verwe#ste†[[3 Vers scheint verderbt (vgl. Parallelüberlieferung); die hsl. Überlieferung mit i¬verwesen~i swV. ›jemandes stelle vertreten‹ (vgl. Le III, Sp. 305) ist syntaktisch und semantisch schwierig. Eher wird eine Verwechslung von i¬verwîzen~i ›tadelnd vorwerfen‹ und i¬verwizzen~i ›für unschuldig halten‹ vorliegen, die mit der Form i¬verweste~i auch anderweitig bezeugt ist (vgl. Le III, Sp. 313).]] |
| | ze einer mi/#s#set{a|â}t·, |
| | ob er dann{a|e}n gienge, |
| | d{a|â} er / niht ze>>#schaffen h{a|â}t·, |
| | #vn#d #spr{e|æ}che / als ein gewizzen man·:[[3 i¬gewizzen~i Adj. ›besonnen, verständig‹ (vgl. Le I, Sp. 995f.).]] |
| | ›gebietet ir / an m{i|î}ne #st{a|â}t·!‹[[2 i¬ir~i$ i¬mir~i {MF/K #118}]][[3 Zum seltenen Hinzutreten des Pronomens im imperativen Satz vgl. h¬25~hMhd. Gramm. § S 110. Übersetzungsvorschläge: »Erlaubt mir, mich zu entfernen«, {Schweikle #7}, S. 217; »Nehmt meinen Platz ein!«, {Kasten #8}, S. 333.]] |
| | daz w{e|æ}r ein>>z#vht #vn#d / #st{u^e|üe}nde ime l{o^e|o}bel{i|î}chen an·. |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|