|
C als neue Leitversion |
| c *Neidh 514 |
| I | c *Neidh 514 = SNE II: c 66 (c 1) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 192r |
| | [rub der #sig rub] / |
| | [ini W|3|rot]olda{nn|n}, r{ay|ei}en fu^:r den wal{dt|t} #/ |
| | {au|û}{ff|f} ein w{i|î}#sen / gr{u^:|üe}ne, #/ |
| | d{a|â} die {p|b}l{u|uo}men wu{n|nn}{i|e}{g|c}l{i|î}chen durch / da{s|z} gras |
| | #sin{d|t} ent#sprunge#n man{i|e}{g|c}#ualt. #/ |
| | d{o|ô} / ho^:rt ich von ge#san{g|c} |
| | michel wunder: #/ wa{s|z} der vogel{ei|î}n / d{a|â} was, |
| | {J|i}r {i|ie}gl{i|î}ch{s|z} #s{ei|î}n #st{y|i}{m|mm}e d{a|â} be#sunder #san{ck|c}, #/ |
| | dar / #vn{t|d}er klan{ck|c} |
| | #s{u^:|üe}{#s#s|z}er #scha{ll|l}, #/ |
| | den h{u|uo}{b|p} d{ie|iu} lie{b|p} na{ch|h}t{i|e}gal. #/ / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 1 |
| I | C Stam 1 = KLD 55 1 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261va |
| | [ini N|4|blau]#v wol {#v|û}f, r{eig|ei}e#n v{u^i|ü}r den walt· |
| | an / eine wi#se lange·, |
| | d{a|â} die bl{#v^o|uo}me#n / wu#nne{k|c}l{i|î}che dur d#c gras· |
| | #sint / gedr#vnge#n man{i|e}{g|c}valt·. |
| | d{a|â} h{o|ô}rte / man[[2 i¬man~i$ i¬ich~i KLD nach c]] vo#n ge#sange· |
| | michel wu#nder: wa{s|z} d#er vo-/gell{i|î}ne w►#c|as◄·, |
| | d#er iege{#s|}l{i|î}che{s|z} #s{i|î}ne #sti#mme #s#vnd#ers / #san{g|c}·, |
| | l{u|û}te erklan{k|c}· |
| | #s{#v^e|üe}{#s#s|z}er #schal·, |
| | de#n h{#v^o|uo}{b|p} d{u^i|iu} / liebe nahtegal·. / |
|
|
|
|
|
|
|
| c *Neidh 515 |
| II | c *Neidh 515 = SNE II: c 66 (c 2) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 192r |
| | [ini L|1|rub]iebe kin{dt|t}, n{u^:|u} g{e|ê}n wir dar |
| | tan{cz|z}en #/ #vnd {au|ou}ch %R{ay|ei}en, #/ / |
| | d{a|â} die b{aw|ou}m wu{n|nn}{i|e}{g|c}l{i|î}chen #st{e|ê}n{|t} %In {p|b}l{u^:|uo}{tt|t}. #/ |
| | die h{ai|ei}d i#st / m{y|i}{n|nn}{i|e}{g|c}l{i|î}ch gefar, #/ |
| | die h{a|â}t #sich gein dem m{ay|ei}e_r|n_[[1=, Konjektur nach C]] |
| | ge/ziere{tt|t} #/ in %Ir{er|} {p|b}e#sten kl{ai|ei}{dt|t}, d{ie|iu} #s{ei|i}n{|t} #s{o|ô} g{u|uo}t. #/ |
| | die vo/gel{ei|î}n al#s{o|ô} #sin{d|t} der wunne#n fr{o^:|ô}. #/ |
| | re{ch|h}t al#s{o|ô} |
| | w{e|æ}r {au|ou}ch / %Ich, #/ |
| | lie{s|z} ein andre #sw{e|æ}re mich. / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 2 |
| II | C Stam 2 = KLD 55 2 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261va |
| | [ini N|2|blau]#v wol {#v|û}f, kind#er, g{e|ê}n wir dar· |
| | tanze#n #vn#d / r{eig|ei}e#n·, |
| | d{a|â} die bl{#v^o|uo}me#n wunne{k|c}l{i|î}che #ste^^nt / gebl{u^o|uo}t·! |
| | d{u^i|iu} heide i#st wu#nne{k|c}l{i|î}che[[2 i¬wu#nne{k|c}l{i|î}che~i$ i¬minneclîche~i KLD nach c]] var·: |
| | #si h{a|â}t / #sich gege#n de#n m{eig|ei}e#n· |
| | gezieret in ir be#ste#n w{a|â}t, / d{u^i|iu} i#st #s{o|ô} g{#v^o|uo}t·. |
| | die vogel alle #sint d#er #s#vm#er<<wu#n-/ne fr{o|ô}#·. |
| | rehte al#s{o|ô}#· |
| | t{e|æ}te {o^v|ou}ch ich·, |
| | #vn#d lie{#s#s|z}e ein / ander #sw{e|æ}re mich#·. / |
|
|
|
|
|
|
|
| c *Neidh 516 |
| III | c *Neidh 516 = SNE II: c 66 (c 3) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 192r |
| | [ini N|1|rub]{ye|ie}man{t|} #sehe an m{ei|î}n l{ai|ei}de, #/[[3 Das Reimschema erfordert die apokopierte Realisierung des Reimworts.]] |
| | m{ei|î}n {ai|ei}gen n{o|ô}t #/ mich {z|t}win/ge{tt|t}, #/ |
| | m{ei|î}ner #sw{e|æ}r wirt wol r{a|â}{tt|t}, #/ #s{o|ô} da{s|z} #so{ll|l} #s{ei|î}n. |
| | G{e|ê} / wir z{u|uo} der linden br{ai|ei}{tt|t},[[3 {Becker # 1672}, S. 325, nimmt ab hier Frauenrede an.]] |
| | d{a|â} man{i|e}{g|c} vogel{ei|î}n #singet. / |
| | ›h{o|œ}r{a^:|â}, liebe {Ey|Î}#sentr{au|û}t‹, #sprach J{u^:|iu}{tt|t}l{i|î}n, #/ |
| | ›die #sumer<<wunn / i#st aber k{u|o}men #/ in d{ie|iu} lan{dt|t}. #/ |
| | m{ei|î}n gewan{dt|t} #/ |
| | #so{ll|l} ich // h{a|â}n, #/ |
| | ich wi{ll|l} z{u|uo} dem %R{ay|ei}en g{a|â}n.‹ #/ / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 3 |
| III | C Stam 3 = KLD 55 3 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261va |
| | [ini N|2|blau]iema#n #sehe an m{i|î}n{u^i|iu} leit·, |
| | #swel{h|ch} eige#n no^^t / mich twinge·; |
| | m{i|î}ner #sorge#n wirt wol r{a|â}t, / #s{o|ô} d#c #sol #s{i|î}n·. |
| | g{e|ê}n wir z{#v^o|uo} d#er linde#n breit·,[[3 {Becker # 1672}, S. 325, nimmt ab hier Frauenrede an.]] |
| | d{a|â} ma-/n{i|e}{g|c} vogel #singe·. |
| | ›h{o^e|œ}r{a|â}, lieb{u^i|iu} %{i|î}#sentr{u|û}t!‹, #sprach / J{#v^i|iu}tel{i|î}n·, |
| | ›ich w{e^^|æ}ne, d{#v^i|iu} #s#vm#er<<wu#nne i#st kome#n / i#n d{u^i|iu} lant·. |
| | m{i|î}n gewant |
| | #solt ich h{a|â}n·, |
| | wan[[1 i¬wan~i$ i¬w~i gebessert]] / ich m{#v^o|uo}{s|z} z{#v^o|uo} de#m r{eig|ei}e#n g{a|â}n#·.‹ / |
|
|
|
|
|
|
|
| c *Neidh 517 |
| IV | c *Neidh 517 = SNE II: c 66 (c 4) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 192v |
| | [ini V|1|rub]or zorn #sprach d{ie|iu} m{u|uo}t#er gar: #/ |
| | ›der t{eu|iu}fel walt %Ir b{ai|ei}d#er, / |
| | des r{ay|ei}en #/ #vnd der #s{ei|î}n von {e|ê}r#ste he{tt|t} gef{u^:|uo}{g|c}! |
| | zw{a|â}r du / kum{p|}#st d{a|â} la_|n_g[[1=, Konjektur mit SNE]] dar, #/ |
| | du h{a|â}#st ni{ch|h}t d{ei|î}n#er kl{ai|ei}der, #/ |
| | die / #s{ei|i}n{|t} noch, d{a|â} #/ #sie d{ei|î}n vater h{ew|iu}{e##r|re} hin tr{u^:|uo}{g|c}, #/ |
| | d{a|â} wir / fl{a|o}{ch|h}ten;[[3 i¬vlœhen~i swV. ›flüchten‹ (Le III, Sp. 411).]] d{a|â}#uon hab d{ei|î}n gemach!‹ |
| | vor zorn #sprach |
| | d{a|â} / da{s|z} kin{dt|t}: #/ |
| | ›ich w{ai|ei}{s|z} wol, w{o|â} d{ie|iu} kl{ai|ei}der #sin{dt|t}.‹ / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 4 |
| IV | C Stam 4 = KLD 55 4 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261va |
| | [ini V|2|blau]or zorne d{o|ô} d{u^i|iu} m{#v^o|uo}t#er #sprach·: |
| | ›d#er tiefel walt / ir beider·, |
| | des r{eig|ei}e#n #vn#d der[[2 i¬der #s{i|î}n b{i|î} {e|ê}r#st ie gew{u^o|uo}{g|c}·~i$ i¬des, der sîn von êrst gewuoc~i KLD]] #s{i|î}n b{i|î} {e|ê}r#st ie ge/w{u^o|uo}{g|c}·! |
| | toht#er, habe d{i|î}n gemach·, |
| | dun h{a|â}#st niht / d{i|î}ner kleider·! |
| | #si #sint noch, dar #si d{i|î}n va{tt|t}er / h{u^i|iu}re tr{u^o|uo}{g|c}·, |
| | d{o|ô} wir flohte#n;[[3 i¬vlœhen~i swV. ›flüchten‹ (Le III, Sp. 411).]] d{a|â} vo#n habe d{i|î}n ge-/mach·! |
| | zorn{i|e}{g|c} #sprach#· |
| | d{o|ô} d#c kint#·: |
| | ›ich wei{#s|z} wol, / w{a|â} d{u^i|iu} kleider #sint#·.‹ / |
|
|
|
|
|
|
|
| c *Neidh 518 |
| V | c *Neidh 518 = SNE II: c 66 (c 5) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 192v |
| | ›[ini L|1|rub]{a|â}{s|z} #sie, w{o|â} du wolle#st #s{ei|î}n! |
| | #sie k{u|o}men[[?? Form? SG]] di#sen r{ay|ei}en #/ |
| | n{y|i}m#er / an dich, #/ d{o|a}##r>>n{a|â}ch k{e|ê}re d{ei|î}nen m{u|uo}t! #/ |
| | %J{a|â} her##r got, wie / pfla{g|c} man m{ei|î}n? #/ |
| | nu kam ich n{y^:e|ie} z{u|uo} r{ay|ei}en: #/ |
| | e{s|z} was hie / vor #vn{p|b}ill{i|î}ch, da{s|z} nu menge {th|t}{u|uo}{tt|t}, #/ |
| | d{ie|iu} z{u|uo} r{ay|ei}en hoffe{tt|t} / re{ch|h}t als #sam die knaben. #/ |
| | du #solt haben |
| | d{ei|î}n gemach; / |
| | z{u|uo} r{ay|ei}en man mich n{y^:e|ie} ge#sa{h|ch}.‹ / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 5 |
| V | C Stam 5 = KLD 55 5 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261va |
| | ›[ini N|2|blau]#v l{a|â} #si, #sw{a|â} #si welle#n #s{i|î}n#·! |
| | #si enkome#nt di-/#se#n[[1 i¬di#se#n~i$ i¬d~i gebessert]] m{eig|ei}e#n· |
| | niem#er an dich, dar n{a|â}ch wen-/de d{i|î}nen m{#v^o|uo}t·! |
| | #i{o|ô} h#erre got, w#c wart eht m{i|î}n·? / |
| | #i{o|ô} enkam ich nie ze r{eig|ei}e#n·: |
| | e{s|z} w►#c|as◄ hie vor #vn-/bill{i|î}ch, d#c n#v megde t{u^o|uo}nt·,[[2 i¬megde t{u^o|uo}nt~i$ i¬mangiu tuot~i KLD nach c]] |
| | d#c #si ze holze lie-/fen r{eig|ei}e#n #sam die knabe#n·. |
| | d#v #solt habe#n |
| | d{i|î}n / gemach·;[[1 i¬gemach~i$ i¬c~i gebessert]] |
| | ze r{eig|ei}e#n ma#n mich nie ge#sach#·.‹/ |
|
|
|
|
|
|
|
| c *Neidh 519 |
| VI | c *Neidh 519 = SNE II: c 66 (c 6) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 192v |
| | ›[ini M|1|rub]ange tet n{y|i}e r{ay|ei}en #sprun{gk|c}, #/ |
| | die doch war{d|t} gel{e|ê}ret, / |
| | da{s|z} #sie d{a|â} h{ey|ei}men #/ l{ai|ei}#stet,[[3 i¬leisten~i swV. ›ein Gebot befolgen, eine Pflicht tun‹ (vgl. Le I, Sp. 1870f.).]] war{d|t} #/ #sie i{ch|h}t ge{p|b}e{tt|t}en. #/ |
| | Nu / i#st n{y|ie}man{t|}, der da{s|z} din{ck|c} |
| | #s{o|ô} gar z{u|e}m {p|b}{e|œ}#sten[[3 i¬{p|b}{e|œ}#sten~i$ Zur entrundeten Schreibung von i¬œ~i vgl. {Ebert # 1686}, § L 36.]] k{e|ê}re{tt|t}, #/ / |
| | #sam die {th|t}{u|uo}n, die all#erm{ai|ei}#st h{a|â}n mi#s#stre{tt|t}en. #/ |
| | lachet {y|i}ema{#nt|n} / vor den leute#n, #/ der i#st verlorn: |
| | wirt mir zorn, #/ |
| | #s{o|ô} rede / ich, #/ |
| | da{s|z} hern{a|â}ch ger{ew|iuw}et e{s|z} mich.‹ / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 6 |
| VI | C Stam 6 = KLD 55 6 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261va |
| | ›[ini N|2|blau]iema#n #vn#ser din{g|c} #vns hie· |
| | #s{o|ô} gar¦ze#m b{o^e|œ}#s-/te#n k{e|ê}ret·, |
| | #s{o|ô} die t{#v^o|uo}nt, die aller mei#st h{a|â}#nt / {#v|ü}b#ertre{tt|t}e#n·. |
| | vil man{i|e}g{u^i|iu} kan·[[2 i¬kan~i$ i¬kam~i KLD]] ze>>r{eig|ei}e#n nie·,[[1 i¬manigu^i⸍⸍ nie·⸍⸍ zereige#n⸍⸍ kan·~i mit Umstellungsvermerk]] |
| | di#v / doch wol wart gel{e|ê}ret·, |
| | da{s|z} #si d{a|â} heime lei#ste,[[3 i¬leisten~i swV. ›ein Gebot befolgen, eine Pflicht tun‹ (vgl. Le I, Sp. 1870f.).]] / #vn#d wart #si iht{z|s} gebe{tt|t}e#n·. |
| | lachet iema#n vor de#m / r{eig|ei}e#n, der i#st v#erlorn·: |
| | wirt mir zorn#·, |
| | #s{o|ô} rede / ich,[[??? Komma an richtiger Stelle?]] |
| | d#c dar n{a|â}ch ger{u^iw|iuw}et mich#·.‹ / |
|
|
|
|
|
|
|
| c *Neidh 520 |
| VII | c *Neidh 520 = SNE II: c 66 (c 7) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 192v |
| | ›[ini B|1|rub]is mit fr{eu|öu}de, liebe{s|z} kin{dt|t}! |
| | wie l{u^:|ü}{cz|tz}el ich da{s|z} l{o^:|a}{#s#s|zz}e! #/ |
| | gan{g|c} / {au|û}f den anger, z{u|uo} den m{ai|ei}den, #/ w{u|ü}r{ff|f} den {p|b}all! #/[[3 i¬z{u|uo} den m{ai|ei}den~i ist gemeinsames Satzglied einer Konstruktion Apokoinu.]] |
| | w{ai|ei}#stu, / w{o|â} d{ie|iu} kl{ai|ei}der #sin{d|t}? #/ |
| | #sie ligen{|t} in dem va{#s#s|zz}e: |
| | gr{ei|î}{ff|f} / in die ki#sten b{ej|î} dem #stollen hin z{u|uo}>>tal, #/ |
| | %Se{cz|tz} ein{|en} {p|b}orte#n / {au|û}{ff|f} d{ei|î}n h{au|ou}{p|b}t #/ fu^:r den glan{cz|z}, #/ |
| | d{ei|î}nen #swan{cz|z}[[3 i¬swanz~i stM. ›Schleppe, Schleppkleid‹ (vgl. Le II, Sp. 1337f.).]] / |
| | leg an dich, #/ |
| | zw{a|â}r, du {p|b}i#st m{y|i}{n|nn}{i|e}{g|c}l{i|î}ch_n#n|_.‹ / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 7 |
| VII | C Stam 7 = KLD 55 7 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261va |
| | ›[ini N|2|blau]#v wis mit fr{o^ei|öu}de#n, liebe{s|z} kint·! |
| | wie w{e|ê}-/n{i|e}{n|}{g|c} ich d#c h{a^^|a}{#s#s|zz}e·! |
| | l{o^v|ou}f an die #str{a|â}{#s#s|z}e z{#v^o|uo} / den kinde#n, wirf den bal·![[3 i¬z{#v^o|uo} den kinde#n~i ist gemeinsames Satzglied einer Konstruktion Apokoinu.]] |
| | wei#stu, w{a|â} d{i|î}ni#v // kleid#er #sint#·? |
| | #si li[mut <l> mut][ins g ins]ent[[1 i¬ligent~i$ i¬g~i gebessert (aus i¬l~i?)]] in de#m va{#s#s|zz}e·: |
| | gr{i|î}f i#n die / ki#st{u|e}n b{i|î} de#m #stolle#n hin ze>>tal·, |
| | lege eine#n / borte#n {#v|û}f da{s|z} h{o^v|ou}bet v{u^i|ü}r de#n kranz·, |
| | d{i|î}nen[[1 i¬dinen~i$ i¬d~i gebessert]] / #swanz[[3 i¬swanz~i stM. ›Schleppe, Schleppkleid‹ (vgl. Le II, Sp. 1337f.).]] |
| | lege an dich·, |
| | d{a|e}s<<w{a|â}r, #s{o|ô} bi#st d#v #s{#v|û}b#er/#Zl{i|î}ch·.‹ / |
|
|
|
|
|
|
|
| c *Neidh 521 |
| VIII | c *Neidh 521 = SNE II: c 66 (c 8) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 192v |
| | ›[ini W|1|rub]e#st E#selm{u|uo}t #vnd %adelint,[[3-10 Sprecherwechsel nicht eindeutig, hier mit KLD.]] |
| | da{s|z} wir {au|û}{ff|f} die [del p del] h{ai|ei}de / |
| | n{a|â}ch {p|b}l{u|uo}men wolten g{e|ê}n, #sie gingen mit #vns dar.‹ #/ / |
| | ›%[ini S|1|rub]ag e{s|z} {y|i}n‹, #sprach %ga{tt|t}elinge, |
| | ›#sie l{a|â}gen n{a|e}{ch|h}t{i|e}{g|c} b{ai|ei}de. #/ / |
| | [ini W|1|rub]ir #sulten di#se[mut r mut][ins n ins][[1 i¬di#sen~i$ i¬n~i gebessert aus i¬r~i?]] #sum{er##r|er} #s{ei|î}n an einer #schar, #/ |
| | dar{cz|z}{u|uo} #/ / [ini E|1|rub]ls #vnd Jrmelgart #vnd J{u^:|iu}{tt|t}el{i|î}n.‹ |
| | ›zoge[[3 i¬zogen~i swV. ›sich auf den Weg machen, eilen, laufen‹ (vgl. Le III, Sp. 1145f.).]] d{ei|î}n, #/ |
| | n{y|i}m #sie da{nn|n}, // |
| | %[ini D|1|rub]ie w{ei|î}l #s{o|ô} mach ich mich {au|ou}ch an.‹ / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 8 |
| VIII | C Stam 8 = KLD 55 8 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261vb |
| | ›[ini W|2|blau]i#ste %engeldrut #vn#d %irmelin·, /[[3-10 Sprecherwechsel nicht eindeutig, hier mit KLD.]] |
| | d#c wir {#v|û}f die heide· |
| | n{a|â}ch bl{#v^o|uo}men / wolte#n g{a|â}n, #si liefen mit #vns dar·.‹ |
| | ›#i{a|â} #sagte / ich{s|z} ir‹,[[2 i¬›jâ sage ichz in‹~i ... KLD]] #sprach %g{#v^e|üe}tel{i|î}n·, |
| | ›#si #i{a|â}hen neht{i|e}n{t|} / beide·, |
| | wir #solde#n di#sen #s#vm#er #s{i|î}n in ein#er #schar·, / |
| | %ella, %bela, %hiltrut #vn#d %g{#v^e|üe}tel{i|î}n·.‹ |
| | ›z{o^vg|ouw}e[[3 i¬zouwen~i swV. (Nbf. i¬zougen~i) ›sich beeilen‹ (vgl. Le III, Sp. 1161f.).]] d{i|î}n, / |
| | nim #si dan·, |
| | die w{i|î}le lege {o^v|ou}ch ich mich an·.‹ / |
|
|
|
|
|
|
|
| c *Neidh 522 |
| IX | c *Neidh 522 = SNE II: c 66 (c 9) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 193r |
| | [ini M|1|rub]i{tt|t} vl{ei|î}{s|z} war{d|t} ber{ai|ei}{tt|t} da{s|z} kin{dt|t}, #/ |
| | in einen #swan{cz|z}[[3 i¬swanz~i stM. ›Schleppe, Schleppkleid‹ (vgl. Le II, Sp. 1337f.).]] / gefalten, #/ |
| | d{o|a}rob ein gu^:rtel wol be#slagen #vnd {au|ou}ch #smal. / |
| | ›w{ai|ei}#stu, w{a|â} die m{ai|ei}{d|t} #sin{d|t}? #/[[3-7 Sprecherwechsel mit SNE.]] |
| | glu^:ck m{u|uo}{ß|z} ir walten, #/[[3-7 Syntax nicht eindeutig.]] |
| | #s{ei|î}{tt|t} / {au|û}{ff|f} dem velde n{y|ie}man{t|} w{ai|ei}{s|z} %Ir zal. #/ |
| | %In der #su{mm|m}er/wunne i#st %Ir fr{eu|öu}de gr{o|ô}{s|z}.‹ #/ |
| | l{au|û}t erd{o|ô}{s|z} #/ |
| | d{a|â} der #schal / |
| | {#v|ü}ber die h{ai|ei}de hin z{u|uo}>>tal. / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 9 |
| IX | C Stam 9 = KLD 55 9 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261vb |
| | [ini M|2|blau]it fli^^{#s#s|z}e wart d#c kint bereit· |
| | i#n #s{i|î}nem[[2 i¬#s{i|î}ne~i$ i¬#s{i|î}nen~i KLD (setzt mit c Nebensatz an)]] / #swanz[[3 i¬swanz~i stM. ›Schleppe, Schleppkleid‹ (vgl. Le II, Sp. 1337f.).]] gevalde#n·, |
| | dar #vmbe ein borte / wol ge#slage#n #vn#d #smal·. |
| | #si gienge#n {#v|û}f die hei-/de breit·. |
| | gel{u^i|ü}{k|ck}e m{#v^e|üe}ze ir walde#n·! |
| | %metze / #vn#d %ella, niema#n k#vnde ir wi{#s#s|zz}en zal·, |
| | d{o|ô} #si / {#v|û}f die heide k{a|â}me#n, fr{o^ei|öu}de gro^^{s|z}·, |
| | l{u|û}t#er d{o|ô}{s|z}· |
| | d{o|ô} / er_¦|_#schal· |
| | den anger alle{s|z} hin ze>>tal·. / |
|
|
|
|
|
|
|
| c *Neidh 523 |
| X | c *Neidh 523 = SNE II: c 66 (c 10) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 193r |
| | [ini S|1|rub]ie h{e|ê}{tt|t}en mangen #spiegel g{u|uo}t |
| | ge#strickt z{u|uo} eine#m r{ei|î}s, / |
| | e{s|z} mo{ch|h}t vil wol der m{ay|ei}e #s{ei|î}n. darun{t|d}#er #san{gk|c}[[1 i¬#sangk~i$ Unterlänge von i¬g~i fehlt]] |
| | {#v|û}{#sß|z} / eine#m mu#n{dt|t} r{o|ô}{tt|t} #/ als {p|b}l{u|uo}t |
| | ein m{ai|ei}{dt|t} #s{u^:|üe}{#s#s|z}e w{ei|î}s. #/ |
| | wol / ge{p|b}r{ei|î}#set[[3 i¬brîsen~i stV. ›schnüren, einschnüren, einfassen‹ (Le I, Sp. 355).]] he{tt|t} #sie #sich, z{u|uo} den #s{ei|î}{tt|t}en lan{gk|c}: #/ |
| | die {ai|ei}n, / die #san{g|c} den andern allen vor, #/ die andern n{a|â}ch. / |
| | %In was g{a|â}{h|ch} #/ |
| | fu^:r den walt, #/ |
| | %Ir fr{eu|öu}d was man{i|e}{g|c}#ualt. / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 10 |
| X | C Stam 10 = KLD 55 10 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261vb |
| | [ini S|2|blau]i h{a|â}te#n menge#n #spiegel g{u^o|uo}t· |
| | ge#stri{k|ck}et / z'eine_r|m_ r{i|î}#se·, |
| | d#c #solde d{o|ô} ir meie #s{i|î}n. dar / #vnder #san{g|c}· |
| | {#v|û}{s|z} r{o|ô}te#m m#vnde al#sa#m ein bl{u^o|uo}t· / |
| | ein maget in #s{#v^e|üe}{#s#s|z}er w{i|î}#se·. |
| | wol ge#stri{k|ck}et,[[2 i¬ge#stri{k|ck}et~i$ i¬gebrîset~i KLD nach c]] / liehte varwe#n, #s{i|î}te#n [exp k exp]lan{k|c}·: |
| | d{u^i|iu} #san{g|c} vor, die / andern #s#vnge#n¦alle n{a|â}ch·. |
| | in w#c g{a|â}ch#· |
| | f{u^i|ü}r / de#n walt·, |
| | d{a|â} h{#v^o|uo}{b|p} #sich r{eig|ei}e#n man{i|e}cvalt·. / |
|
|
|
|
|
|
|
| c *Neidh 524 |
| XI | c *Neidh 524 = SNE II: c 66 (c 11) |
| Überlieferung: Berlin, Staatsbibliothek Preussischer Kulturbesitz, mgf 779, fol. 193r |
| | [ini D|1|rub]{o|ô} %Jene ho^:rten die#se_r|n_[[1=, Konjektur mit SNE]] #schal, #/ |
| | d{o|ô} #sa{h|ch} man #swen{cz|z}el[[3 i¬swanz~i stM. ›Schleppe, Schleppkleid‹ (vgl. Le II, Sp. 1337f.).]] {p|b}licken,[[3 i¬blicken~i swV. ›glänzen‹ (Le I, Sp. 306).]] #/ / |
| | d{a|â} #sie zu#samen k{o|â}men #vn{t|d}er mangen krancz. #/ |
| | vor / dem {p|b}erg in eine#m tal, #/ |
| | %D{o|ô} war{d|t} ein michel zicken.[[3 Substantivierung zu i¬zicken~i swV. ›stoßen, necken‹ (vgl. Le III, Sp. 1100f.).]] / |
| | d{o|ô} da{s|z} ergien{g|c}, des r{ay|ei}en war{d|t} ein w{ey|ei}ter tan{cz|z}, / |
| | den #san{g|c} {y|i}ne B{e|ê}la vor #/ #vnd %Ir ge#spil. #/ |
| | fr{eu|öu}den vil #/ / |
| | h{e|ê}{tt|t}en die: #/ |
| | {y|i}ne was dor{tt|t} wol, #sam i#st #vns hie. / |
|
|
|
|
|
|
|
| C Stam 11 |
| XI | C Stam 11 = KLD 55 11 |
| Überlieferung: Heidelberg, UB, cpg 848, fol. 261vb |
| | [ini V|2|blau]or de#m walde i#n eime tal·, |
| | d{a|â} #sach ma#n #swe#n-/ze[[3 i¬swanz~i stM. ›Schleppe, Schleppkleid‹ (vgl. Le II, Sp. 1337f.).]] bl{i^^|i}{k|ck}e#n·,[[3 i¬blicken~i swV. ›glänzen‹ (Le I, Sp. 306).]] |
| | d{a|â} #si ze{|s}{|a}men k{a|â}me#n, #vn#d man-/gen kranz·. |
| | die megde wurfe#n {o^v|ou}ch de#n bal·, |
| | #si / beg#vnde#n #stri^^che#n·.[[3 i¬strîchen~i stV. ›glatt streichen; sich putzen; sich rasch bewegen‹ (vgl. Le II, Sp. 1234–1236).]] |
| | dar n{a|â}ch h{#v^o|uo}{b|p} #sich de#s mei-/en ein vil michel tanz·. |
| | de#n #san{g|c} in %b{e|ê}le vor / #vn#d man{i|e}{g|c} ir ge#spil·. |
| | fr{o^ei|öu}de#n vil |
| | h{a|â}te#n #sie·: |
| | in / was dort wol, got helfe #vns hie#·! // [[1 Rest der Spalte (14 Zeilen) und folgende Seite (fol. 262r) freigelassen]] |
|
|
|
|
|
|
|
|
|